10 Lines on Madan Mohan Malviya in Hindi | मदन मोहन मालवीय पर 10 लाइन

10 Lines on Madan Mohan Malviya in Hindi | मदन मोहन मालवीय पर 10 लाइन 

मदन मोहन मालवीय एक भारतीय वकील और राजनीतिज्ञ थे।

मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद में हुआ था। 

उनके पिता का नाम पंडित ब्रजनाथ मालवीय और माता का नाम मूना देवी था।

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई और महात्मा गांधी के नेतृत्व में असहयोग आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया। 

उन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की सह-स्थापना की, और 1919 से 1938 तक बनारस हिंदू विश्वविद्यालय के कुलपति के रूप में कार्य किया। 

वह हिंदू राष्ट्रवादी संगठन हिंदू महासभा के संस्थापक भी थे। 

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के सदस्य थे।

मालवीय ने चार बार भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के अध्यक्ष के रूप में कार्य किया। 

उन्होंने एक अंग्रेजी समाचार पत्र, द लीडर की स्थापना की थी। 

मदन मोहन मालवीय को महात्मा गांधी ने ‘महामना’ (महान आत्मा) की उपाधि दी थी।

उन्होंने हिंदू-मुस्लिम एकता की वकालत की।

वह एक वकील भी थे।

उन्होंने इलाहाबाद उच्च न्यायालय में एक वकील के रूप में काम किया। 

वह उस समय के सबसे प्रभावशाली नेताओं में से एक थे। 

12 नवंबर 1946 को 84 वर्ष की आयु में उनका निधन हो गया था। 

उन्हें 2014 में मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 

10 Lines on Madan Mohan Malviya in Hindi | मदन मोहन मालवीय पर 10 लाइन 

मदन मोहन मालवीय एक भारतीय शिक्षाविद्, राजनीतिज्ञ और समाज सुधारक थे। 

मदन मोहन मालवीय का जन्म 25 दिसंबर 1861 को इलाहाबाद, भारत में हुआ था। 

उनके पिता का नाम पंडित बृजनाथ मालवीय था।

उनकी माता का नाम मूना देवी था। 

उन्होंने कुमारी कुंदन देवी मालवीय से विवाह किया। 

उन्होंने भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया।

मदन मोहन मालवीय ने 1916 में बनारस हिंदू विश्वविद्यालय (बीएचयू) की सह-स्थापना की।

वह भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के एक प्रमुख सदस्य थे।

उन्होंने अखिल भारत हिंदू महासभा की भी स्थापना की।

उन्हें महात्मा गांधी द्वारा ‘महामना’ (महान आत्मा) की उपाधि दी गई थी।

वे शिक्षा के महत्व में विश्वास करते थे।

उन्होंने इलाहाबाद के सरकारी हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में भी काम किया।

12 नवंबर 1946 को उनका निधन हो गया था।  

2014 में, उन्हें मरणोपरांत भारत के सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार भारत रत्न से सम्मानित किया गया था। 

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